विकास” के नाम पर बनी कॉलोनियाँ अब “अनियमितता की पहचान”

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जनता पूछेगी जवाब: कब तक रियल एस्टेट का राज चलेगा?

ज़मीन का खेल – भाग 11

 

 

विशेष रिपोर्ट – राकेशभारतीय,

यमुना टाइम्स ब्यूरो

यमुनानगर: पैसों के लालच में अंधे होकर यमुनानगर के विकास को विनाश में बदलने का प्रयास वाले चंद भ्रष्ट अधिकारियों के साथ-साथ भ्रष्ट लोगों और उन्हें मिला राजनीतिक संरक्षण अब जनता के गले की हड्डी बनने लगा है!  लोगों में विभागीय अधिकारियों विशेष कर यमुनानगर जगाधरी नगर निगम, जिला नगर योजना कर कार्यालय और जगाधरी तहसील की कार्यप्रणाली और संबंधित विभागों को लेकर रोष पनपना लगा है! यमुना टाइम्स सिलसिलेवार सॉरी कुड़ियों को अपने कर्तव्य का पालन करते हुए जनता की अदालत में प्रस्तुत कर रहा है!

विशेष रिपोर्ट: राकेश भारतीय

 

🔹 1. जनता का सब्र अब जवाब देने लगा है

कभी “विकास” के नाम पर बनी कॉलोनियाँ अब “अनियमितता” की पहचान बन चुकी हैं।
जहां पार्क होने चाहिए थे, वहां शोरूम खड़े हैं।
जहां गली का रास्ता था, वहां अब दीवारें हैं।
यमुनानगर के नागरिक पूछ रहे हैं —

> “हमने टैक्स दिया, नियम माने… फिर कानून तोड़ने वालों को ही क्यों इनाम मिल रहा है?”

 

🔹 2. मॉडल टाउन – एक ‘रेज़िडेंशियल जोन’ से बना मिनी-मार्केट

यमुनानगर का मॉडल टाउन, जिसे शहर का प्रीमियम रिहायशी क्षेत्र कहा जाता था,
अब “कमर्शियल हब” में बदल चुका है।
सवाल उठता है —

> “आखिर किसकी शॉप से यह शुरुआत हुई?”
“किसने वह पहला ‘अनुमोदन’ दिया, जिससे पूरा क्षेत्र व्यावसायिक बन गया?”

 

सूत्र बताते हैं कि कुछ रसूखदार प्रॉपर्टी डीलरों ने अपने संपर्कों के बल पर CLU मंजूरी का खेल खेला,
और धीरे-धीरे पूरा इलाका ‘रेज़िडेंशियल’ से ‘कमर्शियल’ होता गया —
बिना किसी पब्लिक नोटिफिकेशन या जनसुनवाई के।

 

🔹 3. सट्टा रोड – जमीन के सौदों का नया ठिकाना

आम आदमी पार्टी की टिकट पर विधानसभा का चुनाव लड़ चुके ललित त्यागी, श्रमिक नेता धीरज मल्होत्रा, मुकेश मित्तल आदि  स्थानीय लोगों का कहना है कि “सट्टा रोड” सिर्फ नाम भर नहीं,
बल्कि गैरकानूनी सौदों और दलाली का प्रतीक बन चुका है।
यहां जमीनों के दाम एक रात में तय होते हैं —
नक्शे पर नहीं, मोबाइल स्क्रीन पर।
रियल एस्टेट के कुछ खिलाड़ी यहीं से “डील फाइनल” करते हैं,
और प्रशासन को भनक तक नहीं लगती।

> “जो भी यहां डील करता है, जानता है कि ‘सिस्टम’ से पहले ‘नेटवर्क’ को खुश करना पड़ता है।”
– एक गुमनाम ब्रोकर की स्वीकारोक्ति

 


🔹 4. कानून के पहरे में सत्ता की परछाई

नगर निगम की कई फाइलें महीनों से “जांचाधीन” पड़ी हैं।
न ही कार्रवाई होती है, न ही रिपोर्ट सार्वजनिक।
कई बार कार्रवाई का दिखावा केवल मीडिया दबाव में होता है —
फिर कुछ हफ्तों में सब वैसा ही चल पड़ता है।

“यहां नियम से ज़्यादा जरूरी है रिश्ता।”
“जो ऊपर तक बात पहुंचा दे, उसका सब काम साफ़।”
— एक पूर्व अधिकारी, नाम न छापने की शर्त पर

 

🔹 5. जब जनता ने की शिकायत, तब शुरू हुआ डर का खेल

मॉडल टाउन, रतनपुरा, और सट्टा रोड क्षेत्र के कुछ निवासियों ने जब शिकायतें दर्ज कराईं,
तो उन्हें फोन आने लगे — समझौते के प्रस्तावों के साथ।
कुछ ने बताया कि “शिकायत वापस लेने पर निर्माण वैध करा देंगे” का लालच भी दिया गया।

> “यह डर नहीं, एक संगठित दबाव तंत्र है।”
– कृपाल सिंह स्थानीय सामाजिक कार्यकर्ता

 

🔹 6. ज़मीन का खेल — अब जनता की अदालत में

यमुना टाइम्स की जांच ने ये साबित कर दिया है कि यह खेल
सिर्फ डीलरों का नहीं, बल्कि सिस्टम की चुप्पी का भी परिणाम है।
जनता अब सवाल पूछ रही है:
1️⃣ क्या विकास का नाम लेकर निजी मुनाफे का खेल खेला गया?
2️⃣ क्या अफसरशाही अब जमीन कारोबार की छाया में है?
3️⃣ क्या राजनीतिक संरक्षण के बिना यह मुमकिन था?

 

🔹 7. आवाज़ अब थमेगी नहीं

अब यह जांच केवल खबर नहीं,
बल्कि एक आंदोलन की दस्तक है —
जहां पत्रकारिता सिर्फ रिपोर्ट नहीं करती,
बल्कि जनता के हक की रक्षा के लिए सवाल उठाती है।

🗣️ अगला भाग — “भाग 12 : जब सबूत बोलेंगे”

इस भाग में यमुना टाइम्स प्रस्तुत करेगा
👉 फोटो, दस्तावेज़, सर्वे रिकॉर्ड और जमीन मंजूरी की असली टाइमलाइन।

> यह भाग सच्चाई की सबसे निर्णायक दस्तक होगी।“

स्वतंत्र और सच्ची पत्रकारिता के लिए ज़रूरी है कि वो कॉरपोरेट और राजनैतिक नियंत्रण से मुक्त हो। ऐसा तभी संभव है जब जनता आगे आए और सहयोग करे