जमीन का खेल भाग 9
यमुना टाइम्स ब्यूरो
यमुनानगर (राकेस्ग भारतीय ) जिला यमुनानगर का मॉडल टाउन और आसपास के क्षेत्र कागज़ी रिकॉर्ड में रिहायशी इलाक़ा हैं।
मगर हकीकत में यहां बैंक, शो-रूम, कमर्शियल कॉम्प्लेक्स, जिम, बुटीक और सैलून की कतारें लगी हैं।
नगर निगम की फाइलों में जिन मकानों के नक्शे “डुप्लेक्स रेसिडेंस” के नाम पर पास हुए,
आज वही बहुमंज़िला बिजनेस हब में तब्दील हो चुके हैं।
🔹 2. नियमों की अनदेखी, परंतु रफ्तार तेज़
डीटीसीपी के दिशा-निर्देशों के मुताबिक, किसी भी रिहायशी एरिया में कमर्शियल उपयोग के लिए
“Change of Land Use (CLU)” जरूरी है।
लेकिन मॉडल टाउन में ज़मीन के मालिक पहले निर्माण कर लेते हैं,
और बाद में “नियमितीकरण शुल्क” देकर उसे वैध करवाने की कोशिश करते हैं।
यही वह loophole है जिसने यमुनानगर के रियल एस्टेट सिस्टम को
‘पहले तोड़ो, बाद में जोड़ो’ की संस्कृति में बदल दिया है।
एक तरफ प्रशासन कहता है – “कार्रवाई की जाएगी”,
दूसरी ओर इन्हीं इलाकों में नगर निगम के कर्मचारियों की गाड़ियां पार्क होती दिखाई देती हैं।
स्थानीय सूत्र बताते हैं कि
> “कई जगह तो निगम के अधिकारी खुद उन्हीं दुकानों से किराया वसूलने वालों के साथ बैठकों में दिखे हैं।”
ऐसा प्रतीत होता है कि कानून अब केवल कागज़ पर और कब्ज़ा ज़मीन पर चल रहा है।
🔹 4. जब शिकायत बनती है सौदेबाज़ी
“यमुना टाइम्स” की पड़ताल में सामने आया कि
कई बार जब नागरिकों ने इन अवैध कमर्शियल निर्माणों के खिलाफ़ शिकायतें कीं,
तो पहले तो जांच की प्रक्रिया शुरू की गई,
लेकिन कुछ ही हफ्तों में “पारस्परिक समझौते” के नाम पर
शिकायत वापस ले ली गई या फाइल बंद कर दी गई।
> “समझौता” इस पूरे तंत्र की सबसे महंगी लेकिन सबसे आम प्रक्रिया बन चुकी है।
🔹 5. CLU में गड़बड़ी के दस्तावेज़
सूत्रों के अनुसार, यमुनानगर जिले में पिछले तीन वर्षों में
CLU (Change of Land Use) के 57 आवेदन स्वीकृत हुए —
जिनमें से कई पर यह आरोप है कि निर्माण पहले से चल रहा था,
और आवेदन बाद में दिए गए।
कुछ मामलों में तो “भू-उपयोग परिवर्तन” एक ही जमीन पर तीन-तीन बार किया गया।
इससे साफ़ है कि CLU अब कानूनी अनुमति नहीं, बल्कि लेन-देन का औजार बन चुका है।
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🔹 6. जनता की प्रतिक्रिया
मॉडल टाउन निवासी अशोक मित्तल कहते हैं —
> “हमने मकान खरीदा था परिवार के लिए, अब सड़क पर जाम और कोलाहल है।
बच्चे खेल भी नहीं सकते। ये इलाका अब घर नहीं, मार्केट बन गया है।”
एक अन्य स्थानीय निवासी बताती हैं —
> “यहाँ सुबह से रात तक ट्रैफिक और शोर रहता है।
निगम को सिर्फ़ टैक्स चाहिए, शांति से कोई मतलब नहीं।”
🔹 7. सवाल — किसकी जिम्मेदारी?
क्या निगम अधिकारी इतने असमर्थ हैं कि अवैध निर्माण रोक नहीं सकते,
या मामला कहीं और से “हैंडल” किया जा रहा है?
क्योंकि जिन इमारतों को सील किया गया था,
वे कुछ ही दिनों बाद “तकनीकी खामियों” के नाम पर फिर खुल गईं।
स्पष्ट है कि नियमों से ज़्यादा ताक़त रिश्तों और रसूख की है।
🔹 8. आगे की दिशा – फाइलें खुलेंगी तो नाम भी आएंगे
“यमुना टाइम्स” की यह श्रृंखला अब अगले चरण में प्रवेश कर रही है,
जहाँ हम खोजेंगे –
> 🔸 किन प्रॉपर्टी डीलरों और बिल्डरों ने फर्जी CLU लेकर निर्माण किए
🔸 किन भवनों को “राजनीतिक आशीर्वाद” से नियमित किया गया
🔸 और किन अफसरों ने जांच पूरी होने से पहले अनुमति पर साइन किए
📌 भाग 10 में खुलासा होगा:
> “फाइलों से नाम निकलेंगे – और चेहरों से मुखौटे हटेंगे।”
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