कानून की फाइलों में दबे सच: यमुनानगर की शिकायतें, जो कभी सुनी ही नहीं गईं भाग 9
रिपोर्टर — राकेश शर्मा भारतीय
(यमुना टाइम्स इन्वेस्टिगेशन रिपोर्ट)
🔹 1. कार्रवाई की जगह काग़ज़ी औपचारिकता
नगर निगम यमुनानगर और जिला टाउन एंड कंट्री प्लानिंग (DTCP) विभाग में पिछले दो वर्षों के दौरान रिहायशी क्षेत्र में व्यावसायिक निर्माण और अवैध कॉलोनीकरण से जुड़ी लगभग 200 से अधिक शिकायतें दर्ज हुईं।
इनमें से अधिकांश शिकायतें आज भी “जांच जारी है” के फाइल नोट में बंद पड़ी हैं।
सूत्र बताते हैं कि कई शिकायतें तो कभी रजिस्ट्री तक नहीं पहुंचीं — केवल “रिसीव” कर ली गईं और फिर अलमारी में रख दी गईं।
🔹 2. CLU का खेल — जमीन के रंग बदलने की कला
भूमि उपयोग परिवर्तन (Change of Land Use – CLU) का प्रावधान मूल रूप से विकास को सुचारु बनाने के लिए था,
लेकिन आज यही सबसे बड़ा कानूनी हथियार बन चुका है,
जिसके ज़रिए रिहायशी प्लॉट को कमर्शियल, ग्रीन बेल्ट को प्लॉटेबल और कृषि भूमि को रियल एस्टेट ज़ोन में बदल दिया जाता है।
प्रभावशाली बिल्डरों के लिए CLU सिर्फ़ एक दस्तावेज़ नहीं, बल्कि नियमों को वैध बनाने की कुंजी बन गया है।
🔹 3. अफसर बदलते हैं, मगर फ़ाइलें नहीं
हर नए एसडीएम या डीटीपी (District Town Planner) के आने पर पुराने मामलों की समीक्षा की बात होती है,
लेकिन व्यवहार में कुछ नहीं बदलता।
एक वरिष्ठ अधिकारी ने नाम न छापने की शर्त पर बताया —
> “कुछ मामलों में जांच अधिकारी बदलते ही फाइलें वापस उसी टेबल पर लौट आती हैं,
और फिर ‘अभी जानकारी एकत्र की जा रही है’ का नोट लगाकर मामला ठंडा कर दिया जाता है।”
🔹 4. राजनीतिक दबाव और ‘नियमों की लचीलापन’
जिला प्रशासनिक हलकों में यह सर्वविदित है कि कुछ प्रभावशाली बिल्डर और डीलर राजनीतिक दलों को चंदा या समर्थन देते हैं।
बदले में उन्हें सीलिंग, नक्शा पास और रेगुलराइजेशन में विशेष “सुविधाएं” मिलती हैं।
यही वजह है कि
> “जहां आम नागरिक को एक दीवार उठाने पर नोटिस मिल जाता है,
वहीं पूरे कॉम्प्लेक्स बन जाते हैं — और फाइलें महीनों तक गायब रहती हैं।”
🔹 5. जनता की शिकायतें बनती हैं ‘समझौते के दस्तावेज़’
कई बार शिकायतकर्ता को ही समझाने की कोशिश होती है —
कि “आप मामला शांत करें, हम बीच में सुलह करा देंगे।”
इसी वजह से लोगों में यह धारणा बन गई है कि शिकायत करने से कुछ नहीं होगा,
क्योंकि जिसे शिकायत करनी है, उसे भी डर है और जिससे करनी है, वह असरदार है।

🔹 6. जांच एजेंसियों की चुप्पी
न तो नगर निगम, न ही डीटीसीपी ने अब तक यह सार्वजनिक किया है कि
पिछले वर्षों में कितनी शिकायतों पर वास्तविक कार्रवाई हुई,
कितनों को नोटिस भेजा गया, और कितनों को क्लीनचिट दी गई।
सूचना का अधिकार (RTI) में मांगे गए कई जवाब “प्रक्रिया जारी है” या “विवरण उपलब्ध नहीं” कहकर लौटा दिए गए।
🔹 7. आगे की दिशा — “सिस्टम की पारदर्शिता या जनआंदोलन?”
“यमुना टाइम्स” की इस श्रृंखला के बाद अब स्थानीय नागरिक और सामाजिक संगठनों में चर्चा है कि
अगर कार्रवाई नहीं हुई, तो जन सुनवाई और सोशल रिपोर्टिंग के ज़रिए मामला राज्य स्तर तक उठाया जाएगा।
आखिर सवाल सिर्फ़ एक है —
> कब तक विकास के नाम पर अव्यवस्था को वैधानिकता की चादर ओढ़ाई जाएगी?
📌 अगले भाग (भाग–10) में खुलासा होगा:
> 🔸 किन भवनों और कॉलोनियों को “जांच लंबित” बताकर स्थगित किया गया
🔸 किन अधिकारियों ने डीलरों से सीधे मुलाकातें कीं
🔸 और कौन-से दस्तावेज़ यह साबित करते हैं कि रिहायशी नक्शे पर कमर्शियल साम्राज्य खड़ा हुआ












