जमीन का खेल :भाग 12
जब राजनीति और प्रॉपर्टी एक ही मेज पर बैठी
यमुना टाइम्स ब्यूरो
यमुनानगर (राकेश भारतीय ) यमुनानगर के विकास की सबसे बड़ी विडंबना यही है कि जो योजना बनाते हैं, वही ज़मीन भी खरीदते हैं। रियल एस्टेट के बड़े सौदे अब किसी बोर्डरूम में नहीं,बल्कि “राजनीतिक बैठक” के साइड टेबल पर तय होते हैं।
> “यहां अब नीलामी नहीं होती,
यहां ‘अनुमति’ बिकती है।”
– एक पूर्व निगम अधिकारी, नाम न छापने की शर्त पर
🔹 2. जनप्रतिनिधि या ज़मीन प्रतिनिधि?
कई वार्डों में चुने गए जनप्रतिनिधि
खुद कॉलोनी डेवलपर या डीलरों के साझेदार बताए जाते हैं। एक माननीय के नाम से रजिस्टर्ड प्लॉट अब शोरूम कॉम्प्लेक्स बन चुका है,जबकि CLU मंजूरी उसी के कार्यकाल में जारी हुई थी। हालांकि यह तो हम आपको एक उदाहरण बता रहे हैं जबकि ऐसे कई मामले बताई जा रहे हैं!
> “सिस्टम में वही सबसे ताकतवर है
जो खुद नियम बनाता और तोड़ता भी है।”
— वरिष्ठ एडवोकेट सुरेन्द्र आहूजा
🔹 3. सत्ता की छत्रछाया में सट्टा रोड का विस्तार
सट्टा रोड, जो कभी केवल एक गली का नाम माना जाता था,अब “गुप्त कारोबार केंद्र” बन चुका है। यहां बैठने वाले कुछ नाम सीधे नेताओं के विशेष सहायक या फाइनेंसर बताए जाते हैं।सूत्र बताते हैं कि नगर निगम की कई फाइलें पहले इन लोगों के पास जाती हैं, फिर अफसरों की टेबल पर पहुंचती हैं।
यानी “अनुमोदन” पहले होता है, जांच बाद में। भारतीय किसान यूनियन के नेता एवं एडवोकेट साहब सिंह वर्मा कहते हैं कि सत्ता की मलाई चाटने वाले नेता हो या दूसरे राजनीतिक दलों के नेता सब ने यमुनानगर के विकास पर ध्यान देने की बजाय निजी स्वार्थो के लिए यमुनानगर का बेडा गर्क कर दिया है इसीलिए वह नगर निगम को नरक निगम की संज्ञा देते हैं!
🔹 4. फाइलों की राजनीति — ‘रोको और फायदा उठाओ’ नीति
जांच फाइलों को ठहराना अब नया हथियार बन चुका है।
किसी शिकायत या निर्माण रोकने की फाइल को सिर्फ 30 दिन लटकाना ही पर्याप्त है —
इस बीच निर्माण पूरा हो जाता है,और फिर उसे “स्थायी” बता दिया जाता है।
> “एक सिग्नेचर में सैकड़ों गज़ जमीन की कहानी बदल जाती है।”
— नगर प्रशासन के पूर्व इंजीनियर
🔹 5. जनता के हित बनाम नेताओं की हितपूर्ति
जहां आम आदमी 5 मरले के मकान के नक्शे के लिए महीनों चक्कर लगाता है,वहीं रियल एस्टेट के खिलाड़ी सिर्फ एक फोन से मंजूरी ले आते हैं,क्योंकि उनके पास वह “राजनीतिक कवच” है जो हर नियम को लचीला बना देता है।
> “यहां विकास नहीं, प्रभाव चलता है।”
– कृपाल सिंह गिल समाजसेवी

🔹 6. प्रशासन की मजबूरी या मिलीभगत?
कई ईमानदार अफसरों ने माना कि
> “ऊपर से दबाव इतना होता है कि
या तो फाइल रोक दो, या तबादले की तैयारी कर लो।”
कुछ मामलों में तो FIR ड्राफ्ट तक तैयार हुई,
लेकिन ‘ऊपर से निर्देश’ आने पर फाइल गायब कर दी गई।
🔹 7. ज़मीन नहीं, न्याय बिकता दिख रहा है
आज स्थिति यह है कि
जो बोलता है, वही दबा दिया जाता है।जनता के लिए कानून अब किताब में है,पर ज़मीन पर सत्ता के साए में सिर्फ सौदा चलता है।
> “जब तक जांच राजनीति से ऊपर नहीं उठेगी,
यमुनानगर की ज़मीन बिकती रहेगी —और जनता ठगी जाती रहेगी।”
सुना था कि सबूत बोलते हैं और सच्चाई सो पर्दे फाड़ कर भी सामने आती है जनता की जागरूकता और उनके आशीर्वाद से हमारा पूरा प्रयास रहेगा कि सच्चाई अब फाइलों में कैद न रहे और सामने आये!
🔹 8. फाइलें जो बोलती हैं — पर सुनी नहीं जातीं
यमुनानगर नगर निगम की फाइल नंबर 233/MT-2023,जिसमें मॉडल टाउन में अवैध कमर्शियल उपयोग की शिकायत दर्ज है,पिछले डेढ़ वर्षो से “जांचाधीन” बताई जाती रही है लेकिन हमारे सूत्र बताते हैं —
> “जांच पूरी हो चुकी थी बस रिपोर्ट दबाई गई थी ।”
कारण?
कई नामचीन डीलरों और एक पूर्व पार्षद के नाम रिपोर्ट में दर्ज हैं,और इन पर कार्रवाई होते ही कई “ऊंचे नाम” भी सामने आने का खतरा बन गया था लेकिन इस फाइल को दबा दिया गया और हमारे सूत्र बताते हैं कि अब इस फाइल को कहां गायब कर दिया गया कोई नहीं जानता क्योंकि ना तो यह फाइल निगम के किसी रिकॉर्ड में है और ना ही किसी अधिकारी की टेबल पर धूल फूंक रही है इसे लापता कर दिया गया है दूसरे शब्दों में कहें तो इसे नष्ट कर दिया गया है जैसे कुछ वर्षों पूर्व जगाधरी की लाइसेंस ब्रांच से एक पुरा रजिस्टर ही गायब कर दिया गया था क्योंकि भ्रष्टाचार में लिप्त अधिकारियों और कर्मियों की पोल मीडिया खोलने लगा था, ऐसे कारनामे करने वाले अधिकारियों और कर्मियों की यमुनानगर में कोई कमी नहीं है! यमुनानगर के साथ प्रिय लोग और सत्ता और विपक्ष के नेता तो मेरी पीठ खोजा मैं तेरी वाली कहावत पर चलते हैं इसलिए यमुनानगर चंद भ्रष्ट अफसरो का पसंदीदा स्थल रहा है यहां जो एक बार आया अपनी पोस्टिंग यहीं रखवाने का प्रयास करता है और कहीं तो रिटायरमेंट के बाद भी अपना खेल चलाए रखने के लिए यही के होकर रह जाते हैं! अब बात यदि अतीत की चली है तो लगते हाथों यह भी बता दे की यहां की तहसील में भी बहुत बड़ा फर्जीवाड़ा हुआ था तथा करोड़ो अरबो रुपए का लेनदेन एक फर्जी तहसील से कर दिया गया था जिसका नाम था टाटीपुर, जबकि टाटीपुर नाम की कोई तहसील अस्तित्व में ही नहीं थी! यमुना टाइम्स के दर्शकों और पाठकों को बता दे कि उस समय हम एक प्रतिष्ठित समाचार पत्र में होते थे तो हमने ही इस फर्जी वाडे को उजागर करते हुए रिश्वत के इस खेल का पर्दाफाश करते हुए अपने देश के अपने जिले के करोड़ों के राजस्व को बचाया था और फर्जी वाडे पर लगाम लगाई थी! हम यहां तारीफ करना चाहेंगे उस समय की सरकारों और नेताओं की जो ऐसे समाचार सामने आने पर उस पर तुरंत कार्रवाई करते थे! हमारे एक दो पत्रकार साथियों ने भी जो दूसरे समाचार पत्रों में काम करते थे इस में शामिल होकर अपने-अपने समाचार पत्रों में इसे स्थान दिया था!

🔹 9. CLU मंजूरी – ‘कानूनी लूट’ का औजार
जांच में यह भी सामने आया कि कई कॉलोनियों को CLU (Change of Land Use) मंजूरी एक ही साइन में दे दी गई,जबकि नियम कहता है कि हर केस को अलग तकनीकी निरीक्षण से गुजरना चाहिए।
> “एक फाइल में 3 मंजूरी, सब एक ही दिन —
ये प्रशासनिक कार्य नहीं, खेल का संकेत है।”
— रियल एस्टेट रेगुलेशन एक्सपर्ट
यमुना टाइम्स ने जिन दस्तावेजों की प्रति देखी है,
उनमें 2022-23 के बीच कुल 19 प्लॉटों को CLU मिला,जिनमें से 11 पर आज शोरूम और ऑफिस कॉम्प्लेक्स खड़े हैं।

🔹 10. सट्टा रोड से मॉडल टाउन तक — एक ‘डील नेटवर्क’ का खुलासा
जांच के दौरान यह भी सामने आया कि सट्टा रोड पर बैठने वाले कुछ डीलर मॉडल टाउन और सिटी सेंटर के बड़े सौदों के एजेंट हैं। उनके पास जमीन के सौदे “कॉल पर” फाइनल होते हैं।
> “यह नेटवर्क जमीन नहीं, सिस्टम को खरीदता है।”
– एक रिटायर्ड नगर योजनाकार
सट्टा रोड को अब स्थानीय लोग “डीलिंग ज़ोन” कहने लगे हैं। यहां से तय होता है कि किस इलाके में कब विकास होगा —और किस इलाके को जानबूझकर अधर में छोड़ा जाएगा।
🔹 11. CCTV, कॉल रिकॉर्ड और अंदरूनी नोट — सच की तीन कुंजियाँ!
यमुना टाइम्स ने पाया की जनता की अदालत में महत्वपूर्ण साक्ष्य हैं:
मॉडल टाउन क्षेत्र में निर्माण सामग्री रात में उतरते देखने वाले एक नहीं दो नहीं बल्कि कई कई लोग हैं! रिहायशी क्षेत्र मॉडल टाउन में खड़ी बड़ी-बड़ी बिल्डिंगे और शॉपिंग कंपलेक्स जो दिखाते हैं कि रिहायशी क्षेत्र में कमर्शियल स्थल बनाने के लिए कितना बड़ा खेल किया गया! इसके अलावा कुछ लोगों के पास ऐसे भी प्रमाण में हैं जिनका हम वर्णन नहीं कर सकते क्योंकि उन द्वारा प्रस्तुत साक्ष्य हम यहां प्रस्तुत नहीं कर सकते जिनमें कुछ कॉल रिकॉर्ड्स और सीसीटीवी फुटेज भी है जिसमें रात के अंधेरे में निर्माण सामग्री उतरती दिख रही है! इसके अतिरिक्त एक फाइल पर लिखा एक कर्मी का नोट भी बताया जा रहा है! साक्ष्य साबित करते हैं कि यह खेल सिर्फ जमीन का नहीं,बल्कि सिस्टम की मिलीभगत का एक ब्लूप्रिंट है।
🔹12 जनता के सवाल, अफसरों की खामोशी
जनता पूछ रही है:
अगर निर्माण वैध था तो रात में क्यों हुआ?
CLU नोटिफिकेशन वेबसाइट पर क्यों अपलोड नहीं किया गया?
शिकायतकर्ताओं को जवाब क्यों नहीं मिला?
🔹 12. पुलिस और प्रशासन – चुप्पी की साझेदारी
जिन फाइलों में FIR दर्ज होनी चाहिए थी,
वहां अब “समझौते” के कागज़ रखे हैं।
कुछ शिकायतें गायब, कुछ रद्द, और कुछ को गलती से मिसप्लेस बताया गया।
> “यदि ऐसा हुआ है तो यह केवल लापरवाही नहीं,यह भ्रष्टाचार का सुनियोजित प्रबंधन है।”
– गुरमीत सिंह
अधिवक्ता एवं पूर्व प्रधान बार एसोसिएशन यमुनानगर जगाधरी
यमुना टाइम्स जहां सच बोलना अभी बाकी है…
“सच लिखने वालों की कलम धीमी ज़रूर होती है,
पर जब चलती है, तो इतिहास लिख देती है।” 📜














