यमुनानगर में ‘सट्टा रोड’ से ‘मॉडल टाउन’ तक: जहां नियम बस कागज़ पर हैं
रिपोर्टर — राकेश शर्मा भारतीय
(यमुना टाइम्स इन्वेस्टिगेशन रिपोर्ट)
🔹 1. सट्टा रोड का सिंडिकेट: जहां कानून की रफ़्तार थम जाती है
स्थानीय भाषा में मशहूर “सट्टा रोड” अब केवल एक सड़क नहीं रही, बल्कि यह दलाली, सेटिंग और अनौपचारिक प्रॉपर्टी नेटवर्क का प्रतीक बन चुकी है।
यहाँ खुलेआम ऐसे डीलर सक्रिय हैं जो सरकारी ज़मीन से लेकर प्रतिबंधित क्षेत्र तक को “एडजस्टमेंट” के नाम पर बेचने का दावा करते हैं।

स्थानीय सूत्र बताते हैं कि ये नेटवर्क न केवल भूमाफ़िया से जुड़े हैं बल्कि कुछ प्रभावशाली राजनीतिक चेहरों का भी अप्रत्यक्ष संरक्षण इन्हें प्राप्त है। प्रभावशाली राजनीतिक चेहरों और भू माफिया की पहुंच की धमक इतनी है कि यहां भाटली गांव के नजदीक सेक्टर 22 काटा गया था जहां सड़के बना दी गई सीवरेज बिछा दिया गया लेकिन आम आदमी के लिए इसकी अलॉटमेंट का कोई विज्ञापन आज तक नहीं निकला ताकि आम जनमानस सरकारी आवास की बजाय इन भू माफिया से जुड़े कॉलोनाइजरों की कॉलोनी में अपना आशियाना बनाने के लिए लूटने को तैयार रहे!

🔹 2. यमुनानगर का दिल कहे जाने वाला मॉडल टाउन: कागज़ पर रिहायशी, ज़मीन पर कमर्शियल हब
नगर निगम और डीटीसीपी (Town & Country Planning Department) की ज़ोनिंग पॉलिसी के अनुसार, मॉडल टाउन को साफ़ तौर पर रिहायशी क्षेत्र घोषित किया गया था।
लेकिन हकीकत यह है कि
यहाँ दर्जनों बड़े शॉप-कॉम्प्लेक्स, बैंकों, ऑफिसों और रियल एस्टेट शो-रूमों का निर्माण बिना अनुमति या आंशिक अनुमति के किया जा चुका है।
प्रशासन कई बार नोटिस जारी कर चुका है, कुछ भवनों को सील भी किया गया, मगर असर नगण्य रहा।
कार्रवाई के नाम पर फाइलें घूमती रहीं, और जमीन पर अवैध निर्माण बढ़ते चले गए।
🔹 3. सत्ता और सट्टा का गठजोड़: एक ‘सिस्टमेटिक कवर’
जांच में यह भी स्पष्ट हुआ कि कई प्रॉपर्टी डीलर अपने गैरकानूनी धंधे से इतना फल-फूल चुके हैं कि अब राजनीतिक पहुंच और अफसरशाही पर दबाव डालना इनके लिए सामान्य बात बन चुकी है।
कुछ मामलों में अफसरों को सीधे धमकी देने और शिकायतकर्ताओं को समझौते की टेबल पर बुलाने जैसी घटनाएं सामने आई हैं।
नतीजा यह हुआ कि “शिकायत नहीं मिली” का तर्क प्रशासनिक ढाल बन गया।
🔹 4. नियम बनाम नियमितीकरण: सिस्टम की सबसे बड़ी कमजोरी
जब कोई कॉलोनी या निर्माण अवैध घोषित होता है, तो पहले उस पर कार्रवाई की जाती है,
फिर बाद में नियमित करने (regularisation) की प्रक्रिया के बहाने सब कुछ वैधानिक बना दिया जाता है।
यही वजह है कि अवैध कारोबारियों को कानून से डर नहीं — बल्कि समझौते की उम्मीद रहती है। समाजसेवी कृपाल सिंह गिल कहते हैं कि प्रशासनिक अधिकारी कार्रवाई के नाम पर लोगों की आंखों में केवल धूल झोंकने का काम करते हैं.
🔹 5. जनता की आवाज़: “रिहायशी इलाका अब व्यापार मंडी बन गया है”
मॉडल टाउन के धीरज मल्होत्रा, सुरेश आदि निवासियों का कहना है कि
“हमने घर बनाए थे शांति के लिए, अब रोज़ ट्रैफिक, धूल, आवाज़ और अवैध पार्किंग का झमेला है।”
कई मकान मालिकों ने बताया कि उन्होंने वर्षों पहले आवासीय नक्शा पास करवाया था,
अब बगल में शोरूम और ऑफिस खुलने से उनकी प्रॉपर्टी का रिहायशी मूल्य भी गिर गया है।
🔹 6. प्रशासन की स्थिति: आंखों पर पट्टी, हाथों में रिबन
नगर निगम और डीटीसीपी के अधिकारी बार-बार कहते हैं कि “जांच जारी है”,
मगर जांच का परिणाम कभी सामने नहीं आता।
कई बार अधिकारी खुद बदल जाते हैं,
और हर बार फाइलें नए हस्ताक्षर की प्रतीक्षा में ठंडी पड़ जाती हैं।
🔹 7. अब आगे क्या?
अब यह सवाल सिर्फ़ यमुनानगर तक सीमित नहीं रहा —
यह एक राज्यव्यापी सिस्टम का आईना है,
जहां नियमन और नियमपालन का संतुलन राजनीतिक हितों के नीचे दब चुका है।
📌 “यमुना टाइम्स” की आगामी रिपोर्ट में खुलासा होगा:
> 🔸 किन रियल एस्टेट समूहों ने क्लू (Change of Land Use) की प्रक्रिया का गलत इस्तेमाल किया
🔸 किन अधिकारियों ने शिकायत मिलने के बावजूद कार्रवाई नहीं की
🔸 और किन इलाकों में रिहायशी नक्शे पर कमर्शियल निर्माण चल रहा है









