यमुनानगर की अवैध कॉलोनियों का जाल: कौन हैं असली खिलाड़ी?”

इस खबर को सुनें

स्पेशल रिपोर्ट — “यमुनानगर की अवैध कॉलोनियों का जाल: कौन हैं असली खिलाड़ी?” भाग 3

यमुना टाइम्स ब्यूरो

यमुनानगर (राकेश भारतीय) विकास के नाम पर जिले में बिछा “कॉलोनियों का जाल” अब धीरे-धीरे भ्रष्टाचार की गंध फैलाने लगा है। जिन जमीनों पर हरियाणा सरकार के नियमानुसार खेती या हरित पट्टी होनी चाहिए थी, वहां अब गेट लगे हैं, बोर्ड टंगे हैं और दफ्तरों में फाइलें बंद हैं।

 

प्रॉपर्टी डीलर और रियल एस्टेट कारोबारी इतने ताकतवर हो चुके हैं कि न तो प्रशासन के आदेशों की परवाह करते हैं और न ही कानून की।
जमीन के रजिस्ट्रेशन से लेकर नक्शे पास कराने तक सब कुछ “डील” में शामिल होता है।
सूत्र बताते हैं कि कुछ कारोबारी राजनीतिक संरक्षण और अफसरशाही की निकटता के चलते अपनी कॉलोनियों को वैध ठहराने में सफल रहते हैं, जबकि आम नागरिक को एक छोटा सा नक्शा पास कराने में महीनों भागदौड़ करनी पड़ती है।

आश्चर्य की बात यह है कि जिला प्रशासन बार-बार यही बयान देता है —
“हमें अब तक किसी कॉलोनी की अवैध शिकायत नहीं मिली।”
जबकि हकीकत यह है कि लोग शिकायत करने से डरते हैं।
जो आवाज उठाता है, उसे पहले धमकी मिलती है और फिर समझौते की पेशकश।
कई मामलों में शिकायतें “समझौते की टेबल” पर ही दफन कर दी जाती हैं।

इस बीच, सरकारी भूमि, नालों और सार्वजनिक रास्तों पर कब्जा कर बनाई गई कॉलोनियां न केवल पर्यावरण को नुकसान पहुँचा रही हैं, बल्कि शहर के भविष्य की योजना को भी खतरे में डाल रही हैं।
विशेषज्ञों का मानना है कि यदि यही हाल रहा तो आने वाले वर्षों में ड्रेनेज सिस्टम, बिजली कनेक्शन और सड़कें सबसे बड़ी चुनौती बन जाएंगी।

अब सवाल यह है कि
➡️ क्या प्रशासन कभी इन “सफेदपोश कॉलोनाइज़र” पर कार्रवाई करेगा?
➡️ या फिर “जांच जारी है” का राग ही जनता को सुनाया जाता रहेगा?

सच्चाई यह है कि यमुनानगर के नक्शे पर कई अवैध कॉलोनियां आधिकारिक दस्तावेज़ों से ज़्यादा तेज़ी से फैल रही हैं —
और यह कहानी, “विकास” के नाम पर हो रहे सौदों की सबसे सटीक मिसाल है।

स्वतंत्र और सच्ची पत्रकारिता के लिए ज़रूरी है कि वो कॉरपोरेट और राजनैतिक नियंत्रण से मुक्त हो। ऐसा तभी संभव है जब जनता आगे आए और सहयोग करे