भारतीय ज्योतिष आचार्यों द्वारा मेहनत ना करने के कारण ही हो रहे दो दो पर्व

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यमुना टाइम्स ब्यूरो
यमुनानगर (राजकुमार शर्मा ) हिंदू धर्म में एक त्योहार को दो दिन मनाने की प्रथा शुरू हो रही है। ज्योतिषाचार्यों द्वारा परिश्रम न किए जाने की वजह से यह हो रहा है। जगाधरी अनाज मंडी में विराट धर्मसभा व हिंदू राष्ट्र संघ की स्थापना एवं राष्ट्र रक्षा के कार्यक्रम में उक्त शब्द श्रीगोवर्धन मठ पुरी पीठाधीश्वर जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामी निश्चलानंद सरस्वती महाराज ने कहे। उन्होंने कहा कि समय की चाल सूर्य-चंद्र से निकाली जाती है।

ज्योतिष में कुछ भेद होते हैं। पूरी दुनिया गणित पर टिकी हुई है। ज्योतिषाचार्य यदि परिश्रम करे तो निश्चित तौर पर इसका समाधान निकाला जा सकता है। केवल छपे हुए पंचांग से काम नहीं चल सकता। खुद भी मेहतन करनी पड़ेगी।

शिवपार्वती के विवाह के समय भी पूजे गए थे गणेश

शंकराचार्य ने कहा कि स्वतंत्र भारत की विडंबना है कि देश विकास के नाम पर विनाश की ओर अग्रसर हो रहा है। दर्शन-विज्ञान के बारे में बात को प्रत्येक धर्म के लोग इसके स्वीकार कर रहे हैं। दावा है कि मुस्लिम भी इसका समर्थन करते हैं। सभी के पूर्वज हिंदू ही हैं। वेद के संदर्भ में उन्होंने कहा कि ब्राह्म्ण ही वेद पढा़़ने के लिए अधिकृत हैं। हर पुरुष व्यास पीठ पर बैठकर कथा नहीं कह सकता। अकाल मौत के सवाल पर कहा कि गीता के आठवें अध्याय में काल को ऊपर जाने का मार्ग माना है। ऐसी मौत के फलस्वरूप आत्मा को गति प्राप्त नहीं होती। प्रथम पूज्य गणेश से संबंधित सवाल पर कहा कि रामचरित मानस में शिव-पार्वती विवाह से पूर्व गणपति की उपासना का जिक्र है। गणेश जी अनादि है। शिव पार्वती के विवाह के समय भी गणेश जी की पूजा हुई थी। गण के ईश का नाम गणपति है।
महाराज ने कहा कि जिनको संविधान बनाने का श्रेय दिया जाता है। वह भी इससे पूरी तरह से सहमत नहीं थे। संविधान की धारा 25 में जैन, बौद्ध इत्यादि को हिंदू बताया गया है। पूरे विश्व में हिंदू दूसरे स्थान पर हैं। संविधान को पाश्चात्य जगत की झूठन बताया। संशोधन होने के बाद भी इसमें निरंतर सुधार की गुंजाइश है। मन की चंचलता के बारे में कहा कि मन की चंचलता रसीकता का ध्योत्क है। गीता के 18 वें अध्याय में कहा गया है कि अभ्यास करते-करते जब व्यक्ति का मन रस की प्राप्ति कर लेता है, तो वह शांत हो जाता है। पितरों के श्राद्ध से कभी पीछा नहीं छुड़वाना चाहिए। कुछ लोग समझते है कि गया में चले गए अब श्राद्ध की आवश्यकता नहीं है। यह भावना ठीक नहीं है। सभी लोग सनातनी है। सभी धर्म यहीं से निकले हैं। इसको कोई नहीं छोड़ा जा सकता।

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