यहाँ रोज लगते है शहीदों की चिताओ पर मेले

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हरियाणा का एक ऐसा गांव जहां देवी देवताओं की नहीं शहीदों की होती है पूजा

धर्म जाति और मजहब की दीवारों को तोड़ सब लगाते हैं इंकलाब जिंदाबाद के नारे

यमुना टाइम्स ब्यूरो

यमुनानगर (राकेश भारतीय ) हरियाणा व उत्तर प्रदेश के बीच यमुना नदी के किनारे बसा एक ऐसा गांव जहां हिंदू ,मुस्लिम सिख और ईसाई प्रतिदिन जाकर शीश ही नहीं नवाते बल्कि हर दिन को उत्सव की तरह मनाते हैं। इस गांव के मंदिर में किसी देवी देवता के जयघोष के स्थान पर महान स्वतंत्रता सेनानियों एवं क्रांतिकारियों की याद में इंकलाब जिंदाबाद के नारे लगते हैं। इस मंदिर का हर दिन एक उत्सव है क्योंकि कभी भारत माता, कभी दुर्गा भाभी ,कभी राजगुरु, कभी शहीद सुखदेव, कभी शहीदे आजम भगत सिंह ,कभी लाला लाजपत राय तो कभी नेता जी सुभाष चन्द्र बोस,भीम राव अम्बेडकर तो कभी अश्फाख उल्ला खान का जन्मदिन या पुण्यतिथि हर दिन को शहीदों के नाम अर्पित करते हुए एक उत्सव के रूप में मनाया जाता है ।

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इस मंदिर में गांधीजी के असली भारत अर्थात ग्रामीणों की बड़ी संख्या के साथ साथ राहगीरों और प्रदेश के कोने कोने से देश प्रेमियो के टोले भी शीश नवा कर ही गुजरते हैं।
हरियाणा और उत्तर प्रदेश के बीचो-बीच बह रही यमुना नदी के किनारे जिले के अंतिम छोर पर स्थित गुमथला राव में एक ऐसा मंदिर आपसी भाईचारे एकता की मिसाल कायम कर रहा है जहां शहीदों को

श्रद्धासुमन अर्पित करने के लिए किसी विशेष अवसर का इंतजार नहीं किया जाता यहां हर दिन इंकलाब जिंदाबाद, वंदे मातरम के नारे लगते हैं। 22 वर्षों से निरंतर यहां स्थापित प्रतिमाओं के साथ-साथ वीर क्रांतिकारियों, वीरांगनाओं की प्रतिमाएं और हाथ से बने पोर्टेट भी मंदिर की शोभा बढ़ा रहे हैं। इंकलाब मंदिर के संस्थापक एडवोकेट वरयाम सिंह के अनुसार गुमथला राव का यह मंदिर पूरे देश में नहीं है। देश की आजादी में अपना सर्वस्व न्योछावर करने वाले तथा प्राणों की आहुति देने वाले हर शहीद का जन्मोत्सव हो या शहीदी दिवस यहां धूमधाम से मनाया जाता है ।

 

कार्यक्रमों में इंकलाब मंदिर की टीम के साथ साथ क्षेत्र के गणमान्य व्यक्ति पहुंचते हैं तथा स्कूलों के बच्चे भी बढ़-चढ़कर कार्यक्रम में भाग लेते हैं। उन्होंने बताया कि शुरुआती दौर में मंदिर प्रांगण में केवल शहीद-ए-आजम भगत सिंह की प्रतिमा स्थापित की गई थी लेकिन उसके पश्चात सुखदेव ,राजगुरु,दुर्गा भाभी,अशफख उल्ला खान, भारत माता, लाला लाजपत राय, नेताजी सुभाष चंद्र बोस, शहीद उधम सिंह कंबोज, चंद्रशेखर आजाद ,लाला लाजपत राय आदि की प्रतिमाये भी स्थापित की गई तथा इसके साथ-साथ देश की स्वाधीनता में अपना सब कुछ न्यौछावर करने वाले महान क्रांतिकारी उनकी प्रतिमाओं के अलावा पोर्टेड भी स्थापित किए गए। देश में अपनी तरह के इकलौते इंकलाब मंदिर की ख्याति दूर-दूर तक बढ़ती जा रही है वर्ष 2000 मैं स्थापित इस मंदिर में जहां केवल एक ही प्रतिमा थी वहीं अब कई प्रतिमाएं लग चुकी हैं । तरह-तरह के सैकड़ों पौधों के तने हरे सफेद केसरिया रंग से रंगे हुए देश भक्ति का जुनून यहां आने वाले लोगों के खून की रगों में हिलोरें मारने को विवश करता है।


शहीदों की याद में स्थापित भारतवर्ष के इकलौते इंकलाब मंदिर में जहां आमजन शहीदों की प्रतिमाओं के समक्ष शीश नवाने पहुंचते हैं वही शहीदों के परिजन भी यहां आकर शीश नवा चुके हैं। शहीद उधम सिंह के परिवार से खुशी ना ज्ञान सिंह हरपाल सिंह को शहीद मंगल पांडे के वंशज देवीदयाल पांडे व शीतल पांडे भी यहां आयोजित कार्यक्रमों में शिरकत कर चुके हैं इसके साथ साथ खेल मंत्री संदीप सिंह ,आरएसएस के राष्ट्रीय प्रचारक इंद्रेश कुमार ,पूर्व राज्य मंत्री करण देओल, फिल्म प्रमाणन बोर्ड के सदस्य आर मोहमद , पूर्व संसदीय सचिव श्याम सिंह राणा ,यमुनानगर के उपायुक्त रहे रोहताश सिंह खर्ब आदि यहां आकर शीश नवा चुके हैं जिसका प्रमाण यहां लगे शहीदों की प्रतिमाओं के साथ लगे शिलालेख दे रहे हैं। इंकलाब मंदिर के संस्थापक एडवोकेट वरयाम सिंह ने बताया कि यहां बड़ी संख्या में स्कूली बच्चे भी आते हैं तथा इस मंदिर में आकर उन्हें जहां अपने इतिहास का पता चलता है वही क्रांतिकारियों द्वारा दिए गए बलिदानों से भी काफी कुछ सीखने को मिलता है। डॉक्टर वरयाम सिंह ने मौजूदा राजनीतिक हालातों पर भी कटाक्ष किया और कहा कि आज कुछ राजनेता तो स्वार्थों के लिए शहीद-ए-आजम भगत सिंह को आंतकवादी करार दे रहे हैं जबकि उनका पूरा खानदान गद्दार रहा है, और वह स्वयं भी गद्दार हैं तथा सस्ती लोकप्रियता हासिल करने के लिए वह देश के सूरमाओ और क्रांतिकारी वीरों को आंतकवादी करार दे रहे हैं। मंदिर में आने वाले बच्चे हों या बूढ़े जवान हर कोई कहता है कि उन्हें मंदिर में शहीदों के समक्ष शीश नवाकर जो सुकून मिलता है वह कहीं नहीं है।
फोटो इंक़लाब मन्दिर

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