जायदाद के लोभी बेटो ने नही दी अपनी मृतक माँ को मुखाग्नि

इस खबर को सुनें

 

तीन-तीन बेटे होने के बावजूद भी एक मां को नही हो सकी अपने सगे बेटों के हाथो अंतिम संस्कार की रस्म

एक तरफ जल रहा था अभागन मां का शव तो दूसरी तरफ बेटे मना रहे थे अपने बेटे की शादी की खुशियां

यमुना टाइम्स ब्यूरो
फिरोजपुर: अक्सर माता-पिता अपने बच्चों की परवरिश में कोई कोर कसर नहीं छोड़ते क्योंकि उनको अपने बच्चो से एक उम्मीद होती है। कि उनके बच्चे बुढ़ापे में उनकी देखभाल करेगे और बुढ़ापे मे उनका सहारा बनेगे।लेकिन आजकल के बच्चों के अंदर जमीन जायदाद को लेकर इतनी लालसा बढ़ चुकी है आज के बच्चे अपने बुजुर्ग माता-पिता को बुढ़ापे में घर से निकाल रहे हैं। इतना ही नहीं उनकी मृत्यु पर उनको अंतिम विदाई और उनके शव को आग्नि देने से भी कंनी कतराते नजर आ रहे है ऐसा ही एक ताजा मामला सामने आया है जिला फिरोजपुर के विधानसभा हलका जीरा से जहा पर यह सभी बाते एकदम सच होती दिखाई दी!
मामला है जिला फिरोजपुर के हल्का जीरा विधानसभा क्षेत्र के गाव लहुका से जहा तीन बेटे होने के बावजूद भी एक म्रत मां को अपने बेटों के हाथो चिता को अग्नि देना नसीब नही हुआ! इस मामले को लेकर मृतक औरत की बेटी राजविन्दर कौर वा बलवीर कौर ने बताया कि उनकी मां गुरदयाल कौर जो पिछले लंबे समय से उनके साथ रह रही थी! उन्होंने बताया कि उनके तीन भाई हैं। और तीनों भाइयों ने अपने पिता की मृत्यु के बाद सारी संपत्ति अपने नाम करवा कर अपनी बूडी मा को घर से बेदखल करके घर से निकाल दिया । उन्होंने कहा कि उन्होंने अपने भाइयों से कई बार पंचायतों के माध्यम से बात की थ । कि वे बूढ़ी माँ को बुढ़ापे में घर से बाहर न निकाले, बल्कि उनकी सेवा करें, लेकिन भाइयों ने उनकी एक न सुनी और अपनी माँ को घर से निकाल दिया, जिसके बाद वे अपनी माँ को अपने साथ ले गए और देखभाल करना जारी रखा। लेकिन बीते दिन उनकी माँ गुरदयाल कौर का निधन हो गया और उसकी अंतिम इच्छा थी कि उनका अंतिम संस्कार उनके ससुराल के गाँव मे किया जाये और आज जब उसकी माँ के शव को गाँव लहुका में दाह संस्कार के लिए लाया गया और रिश्तेदारों ने तीनों बेटों को एक संदेश भेजा कि आखिरी बार वह अपनी मां की चिता को आग दे जाये,लेकिन तीनों बेटों में से कोई नहीं आया और बेटियों ने अपनी मां की चिता में आग लगा दी। इस मौके पर गुरदयाल कौर की बेटियों ने कहा कि 50 किला जमीन उनके भाइयों के नाम है। भले ही उन्होंने इसमें से आज तक कभी अपना हिस्सा नहीं मांगा, लेकिन आज उनकी मां और उन्हें यह दिन देखने पढ रहे हैं।

स्वतंत्र और सच्ची पत्रकारिता के लिए ज़रूरी है कि वो कॉरपोरेट और राजनैतिक नियंत्रण से मुक्त हो। ऐसा तभी संभव है जब जनता आगे आए और सहयोग करे