“हम भारत के लोग भारत को एक …………….अंगीकृत करते हैं”” टॉप 100 में आई भारत की बेटी अर्शजोत ओबेरॉय ने फहराया झंडा। गणतंत्र बनने से ही भारत मे कानून का राज स्थापित हुआ। गणतंत्र की सफलता के लिए राजनीति का धर्म हो।

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73वां गणतंत्रता दिवस इनैलो कार्यकर्ताओं ने निशात बाग अम्बाला छावनी में बहुत हर्ष व उल्लास के साथ मनाया। इस अवसर पर टॉप 100 में आई भारत की बेटी अर्शजोत ओबेरॉय ने राष्ट्रीय झंडा तिरंगा फहराया। सभी भारतीयों की आन-बान-शान तिरंगा को सल्यूट करते हुए सभी कार्यकर्ताओं लड्डू बांटे। इस अवसर पर वरिष्ठ नेता डॉ राम नाथ शर्मा ने व प्रदेश प्रवक्ता ओंकार सिंह ने अम्बाला की बेटी अर्शजोत ओबरॉय को सम्मानित किया व उपस्थित कार्यकर्ताओ को सम्बोधित किया। सभी देश व प्रदेश वासियों को गणतंत्र दिवस की शुभकामनाएं देते हुए इनैलो नेता ओंकार सिंह ने कहाकि आज ही के दिन 26 जनवरी 1950 में भारत ने समानता व कानून के सिद्धान्त को मानते हुए भारतीय सविंधान को स्वीकृत व अंगीकृत किया था जिसका अभिप्राय यह था कि भारत मे राजशाही प्रथा का अंत हो गया और सम्पूर्ण भारत की व्यवस्था एक ही कानून से नियमित व नियंत्रित होने लगी। सविंधान की प्राइमा में ही स्पष्ट कर दिया गया कि भारत मे भारत की जनता ही सर्वोच्च है कोई व्यक्ति विशेष नही “” “”हम भारत के लोग भारत को एक ………..अंगीकृत करते हैं””
विश्व के सबसे बड़े गणतंत्र होने के बावजूद आज भारत मे परिस्थितियां न्यायोचित व अनुकूल नही हैं। गणतन्त्र की सफलता के लिए जरूरी है कि राजनीति का धर्म हो, धर्म की राजनीति न हो। धर्म का कार्य है लोगों को सदाचारी और प्रेममय बनाना और राजनीति का उद्देश्य है लोगों की आवश्यकताओं को ध्यान में रखते हुये उनके हित में काम करना, धर्म और राजनीति एक दूसरे के पूरक हैं विरोधी नहीं। जब धर्म और राजनीति साथ-साथ नहीं चलते, तब हमें भ्रष्ट राजनेता और कपटी धार्मिक नेता मिलते हैं। एक धार्मिक व्यक्ति, जो सदाचारी और स्नेही है, अवश्य ही जनता के हित का ध्यान रखेगा और एक सच्चा राजनीतिज्ञ बनेगा इसीलिए उसे धार्मिक होना ही है। परन्तु राजनीतिज्ञ को इतना भी धार्मिक न होना है जो दूसरे धर्मों की स्वतन्त्रता और उनकी विधियों पर बंदिश लगाये। राजनीति और धर्म दोनों ही हर वर्ग के जीवन को प्रभावित करने वाले विषय है जो कभी भी एक दूजे से अलग नही हो सकते मगर राजनीति की दशा और दिशा के बारे में सोच बदलने की आवश्यकता है। आज धर्म की राजनीति को लेकर तमाम सवाल, आरोप-प्रत्यारोप उठ रहे है। राजनेताओं को राजनीति के धर्म का पालन करना होगा, ऐसा न हो की धर्म की राजनीती की जाये । भारतीय राजनीति के इतिहास में देश की आज़ादी के बाद से अबतक जिस तरह से देश में राजनेताओं ने राजनीति की है वह सोचनीय है। आज भारतीय राजनेता जो सत्ता पे आसीन हैं या फिर विपक्ष में हैं, राजनीति का धर्म एवंम सिद्धान्तों को भुला कर धर्म की राजनीति कर सत्ता पे कब्ज़ा करना चाहते हैं।
भारत जिसने पूरी दुनिया को सार्वभौमिक स्वीकृति (universal acceptance)का पाठ पढ़ाया हो जिस ने विश्व के सभी धर्मों को सत्य के रूप में स्वीकार किया हो, जो कभी सोने की चीड़या हुवा करता था जहाँ गंगा-यमुनी तेहज़ीब की दुहाई दी जाती थी, जहाँ विश्व् भर में सब से ज़्यादा भाषाएँ और धर्म में आस्था रखने वाले लोग रहते हों ,जहाँ की एकता और अखण्डता इतिहास रचती हो, जहाँ की सभ्यता को दूसरे देशों में मिसाल बताया जाता हो वहां आज अराजकता का माहौल मानसिक पीड़ा देता है।
आज क्यों किसी को हिंदुत्व तो किसी को इस्लाम खतरे में लगता है और क्यो राजनेता धर्म की राजनीती करके सत्ता हथियाना चाहते हैं। देश का कोई भी नागरिक चाहे वह किसी भी समुदाय से हो,किसी धर्म में आस्था रखता हो उसको देश में किसी भी तरह का दंगा फसाद खून-खराबा करने का कोई अधिकार नही है क्योंकि इसमें केवल मासूम की ही जान जाती हो। सब बातों व सारे धर्मों से ऊपर जो मानवता का धर्म है उसकी फ़िक्र किसी को भी नहीं है। कहीं धर्म तो कहीं नस्लवाद की लड़ाई जारी है। देश की जनता की आँखें तरस गयी इस बात के लिए की जिस नेता को अपना बहुमूल्य वोट देके सत्ता तक पहुंचाया वो कभी जनता से किये गए वादों को पूरा करने हेतु सरकार से लड़ाई करे।
आज देश के हर कोने में धर्म को लेकर बहस छिड़ी हुई है जिसमे अनगिनत जानें जा चुकी हैं और न जाने कितनी जानें और जाएंगी। मानवता के लिए बड़ी बड़ी बातें तो सब करते हैं मगर कभी ईमानदारी से उसी मानवता की सेवा के लिए अपनी सोच बदलने की कोशिश कोई नही करता। हम एक ऐसे माहोल में जी रहे हैं जहां परम्पराओं और अंधविश्वास की बंदिश से आज़ाद होना हमारे बस में नहीं , यही कारण है कि हम धर्म और उसकी परिभाषा ही भूल गए। वास्तव में यदि हम तरक्की,विकास व खुशहाली चाहते हैं तो हमे राजनीति के धर्म का पालन करना ही होगा। इस अवसर पर अशोक धवन, रमेश यादव, तुषार कौशिक, सिन्नी सेठी, मेहर सिंह जाट, धर्मपाल, प्राण नाथ वैद, गुरमीत सिंह, पुष्पा सिंह राठौड़, सुखविंदर सिंह, प्रियंका चौधरी, रविता शर्मा, ध्रुव कुमार, जय चन्द मिश्रा, अम्पू गुप्ता, ज्ञान गुप्ता, सुनील शाह, अमरपाल राणा, सुभाष चंद, अर्जुन कुमार सहित काफी संख्या में कार्यकर्ता उपस्थित थे।

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