प्लाईवुड इंडस्ट्री:किसी केमिकल फेक्ट्री के पास नही पर्यावरण क्लीयरेंस,बढ़े रेटो से खलबली

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प्लाईवुड इंडस्ट्री:किसी केमिकल फेक्ट्री के पास नही पर्यावरण क्लीयरेंस,बढ़े रेतो से खलबली

रिपोर्ट :राकेश भारतीय
यमुनानगर में किसी भी फार्मल डी हाइट कैमिकल की
फेक्ट्री के पास पर्यावरण क्लीयरेंस नही
एनजीटी के आदेशो के बाद बंद हुई इन फेक्ट्रीयो से बेस प्रोडक्ट के रेट छह से 8 प्रतिशत बढने से बढ़े प्लाईवुड के रेट
व्यापरियों के साथ साथ उपभोगता हुए परेशान
राकेश भारतीय
यमुनानगर: NGT के चाबुक से भले ही देश के बाकी राज्यो में इसका प्रभाव न पड़ा हो लेकिन नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल के आदेश हरियाणा की प्लाईवुड इंडस्ट्री के लिए चाबुक साबित हो रहे है और इन आदेशो से हरियाणा सबसे ज़्यादा प्रभावित हुआ है,क्योंकि यहीं पर सबसे ज़्यादा प्लांट हैं और ऐक्शन भी सिर्फ़ यहीं पर हुआ है।
एनजीटी के आदेशो के बाद बंद हुई फार्मल डी हाइट कैमिकल की फेक्ट्रीयो के कारण  यमुनानगर प्लाईवुड इंडस्ट्री ने वुड बेस प्रोडक्ट के रेट छह से 8 प्रतिशत तक बढ़ा दिए है जिसके चलते कोरोना बंदी के चलते मंदी से उबरने के लिए प्रयास कर रहे व्यापरियों के साथ साथ उपभोगता परेशान हो गये है । रेट बढ़ाने को मजबूरी बताते हुए इसका कारण बताया जा रहा है कि फार्मल डी हाइट कैमिकल की फैक्ट्रियां बंद
होने से कैमिकल के रेट काफ़ी बढ़ गए है । वहीं फेस विनियर के रेट
भी कोरोना काल के चलते  20 प्रतिशत बढ़ गए हैं। इससे प्लाई और प्लाईवुड की लागत
10 से 15 प्रतिशत बढ़ गई है।
यमुनानगर की प्रसिद्ध प्लाईवुड इंडस्ट्री  पुरे देश ही नही बल्कि एशिया तक में अपनी धाक जमा चुकी है। देश का शायद ही कोई ऐसा हिस्सा हो जहा यमुनानगर की प्लाईवुड इंडस्ट्री का बना समान न हो लेकिन लगता है अब इस उद्योग को नजर लग गयी है।बढ़े रेटो  का  बोझ प्लाईवुड व्यापारियों पर पड़ रहा है। प्लाईवुड कारोबारियों का मानना है कि अगर फार्मल डी हाइट कैमिकल की
फैक्टरियां पहले की तरह नहीं चली तो प्लाईवुड फैक्टरियां लंबे समय तक
नहीं चला पाएंगे। क्योंकि कैमिकल का रेट हर दिन बढ़ रहा है। इसका सीधा
नुकसान प्लाईवुड कारोबार को हो रहा है।
फार्मल डी हाइट के रेट इसलिए बढ़े
साल 2006 में बनाए पर्यावरण नियम के अनुसार फार्मल डी हाइट की फैक्ट्री
लगाने के लिए पर्यावरण क्लीयरेंस लेना जरूरी है। यमुनानगर में कुल ग्यारह
फैक्टरियां हैं। इसमें एक को छोड़ दस  इसके बाद लगी हैं। लेकिन किसी के
पास पर्यावरण क्लीयरेंस नहीं है। यह मसला एनजीटी तक
गया, वहां से ऑर्डर आने के बाद पॉल्यूशन कंट्रोल बोर्ड के अधिकारियों ने
बिना क्लीयरेंस लिए चल रही फैक्ट्रियों को बंद कराने की कार्रवाई शुरू
की। हरियाणा में 18 फैक्ट्रियां ऐसी थी जोकि बिना पर्यावरण क्लीयरेंस के
चल रही थी जिसमें ३ फ़ैक्टरी 2006 से पहले की हैं। बता दे कि इन फैक्ट्रियों के बिना ग्लू नहीं बन सकता। इसका रेट 21 से 22 रुपए प्रति लीटर पर पहुँच गए हैं।
बंद हुयी फेक्टरियो का क्या कसूर
उद्योग जगत से जुड़े लोगो का मानना है कि एनजीटी के आदेश 2006 के बाद से लगी फक्ट्रियो पर ही लागु क्यों हो रहे है ,ऐसे लोगो का कहना है प्र्दुष्ण विभाग 2019 से पहले इन केमिकल फेक्ट्रीस को लगाने की अनुमति बिना बिना पर्यावरण क्लीयरेंस के देता रहा बाद में जब विभाग को पता चला तो विभाग ने 2006 के बाद की फेक्ट्रीस बारे बोलना आरम्भ किया यदि इसके बाद लगी फेक्ट्रीस में कोई कमी थी तो विभाग को उसे पूरा करने के आदेश देने चाहिए थे न कि उन्हें बंद करने के। उधोगपति आनदं जैन ,सतीश गर्ग ,अमरीश बंसल आदि का कहना है कि प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से इन फार्मल डी हाइट की फैक्ट्रीस से हजारो लोगो को रोजगार मिला हुआ है और सब स्वदेशी तकनीक से तेयार होता है। वर्ष 2006 से पहले जो इकाइ स्थापित हुई है उसकी तकनीक पुराणी होगी या  2006 के बाद लगी फेक्ट्रीस की ।
फेस विनियर का रेट इसलिए बढ़ा
फेस विनियर एसोसिएशन के पदाधिकारियों ने बताया कि पहले लॉकडाउन के चलते
मलेशिया, बर्मा, इंडोनेशिया और चाइना से फेस विनियर नहीं आ पाया। वहीं
बाद में चीन के साथ तनातनी के चलते व्यापारियों की डिमांड के अनुसार नहीं
आ रहा। व्यापारियों के अनुसार 20 प्रतिशत रेट बढ़ गए हैं।
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