हरियाणा में हजारों कर्मियों पर अनिश्चितता की तलवार

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यमुना टाइम्स ब्यूरो
यमुनानगर(  राकेश भारतीय) हरियाणा के सहायता प्राप्त कॉलेजों के हजारों कर्मचारियों की ज़िंदगी इन दिनों मुश्किलों के भंवर में फंसी हुई है। दो महीने से वेतन न मिलने के कारण उनके घरों के चूल्हे ठंडे पड़ गए हैं और भविष्य अंधकारमय नज़र आ रहा है। ये हालात न सिर्फ उनकी रोज़मर्रा की ज़रूरतों पर चोट कर रहे हैं, बल्कि आत्मसम्मान और अस्तित्व पर भी गहरी चोट पहुँचा रहे हैं।
जी हां भूखे पेट भजन होया ना गोपाला वाली कहावत यू तो हर क्षेत्र में सटीक बैठती है लेकिन लगता है हरियाणा के एडिट कॉलेजो के हजारों शिक्षक दो-दो महीने से वेतन न मिलने के चलते मानसिक तनाव से गुजर रहे है।
हरियाणा के सहायता प्राप्त (एडेड) कॉलेजों में कार्यरत हज़ारों कर्मचारियों को पिछले दो महीनों से वेतन की अनिश्चितता एक गंभीर संकट बन चुकी है। यह समस्या न केवल शिक्षकों के निजी जीवन को प्रभावित कर रही है, बल्कि राज्य की शिक्षा व्यवस्था और छात्रों के भविष्य के लिए भी खतरा पैदा कर रही है। शिक्षकों का आरोप है कि सरकारी विभागों में बजट आवंटन की लंबित प्रक्रिया, प्रशासनिक लापरवाही और नीतिगत उदासीनता इस संकट का मूल कारण है।
वेतन न मिलने के कारण शिक्षकों का जीवन अस्त-व्यस्त हो गया है। अधिकांश शिक्षकों का कहना है कि उनके परिवार की आय का एकमात्र स्रोत उनका वेतन है। दो महीने की देरी से उन्हें ईएमआई, बच्चों की स्कूल फीस, घर के राशन-पानी और चिकित्सा खर्चों के लिए कर्ज़ लेना पड़ रहा है। कुछ शिक्षकों ने बताया कि बैंक उनके खातों से ईएमआई स्वतः काट रहे हैं, जिससे उनकी बचत शून्य हो चुकी है। एक शिक्षक ने नाम न छापने की शर्त पर बताया, *”मेरी बेटी का एडमिशन मेडिकल कॉलेज में हुआ है, लेकिन फीस भरने के लिए मैंने साहूकार से कर्ज़ लिया है। अब ब्याज का बोझ बढ़ता जा रहा है।”*
आर्थिक तनाव ने शिक्षकों के मानसिक स्वास्थ्य को भी प्रभावित किया है। कई शिक्षकों में अनिद्रा, चिंता और अवसाद के लक्षण देखे जा रहे हैं। एक महिला शिक्षिका ने कहा, *”हर महीने बच्चों की फीस और बिजली के बिल का डर सताता है। नौकरी होते हुए भी भीख माँगने जैसी स्थिति है।”* इस तनाव का असर उनके शिक्षण कार्य पर भी पड़ रहा है। कक्षाओं में एकाग्रता की कमी और छात्रों के प्रति चिड़चिड़ापन शिक्षक-छात्र संबंधों को खराब कर रहा है।

हरियाणा के सहायता प्राप्त कॉलेजों के हजारों शिक्षक और कर्मचारी आज एक गहरे संकट से जूझ रहे हैं। ।

यह भी बता दें कि हरियाणा में सहायता प्राप्त (एडेड) कॉलेजों की संख्या 97 है, जिनमें लगभग 2,932 शिक्षक कार्यरत हैं।
हालांकि, इन कॉलेजों में शिक्षकों की भारी कमी है। वर्तमान में लगभग 1,290 शिक्षकों और 810 गैर-शिक्षण कर्मचारियों की पदस्थापनाएँ रिक्त हैं, जो कुल स्वीकृत पदों का 45% से अधिक है। विशेष बात यह भी है कि सरकार इन कॉलेजों के कर्मचारियों के वेतन का 95% वहन करती है।

दूसरी और कालेज शिक्षक संघों ने इस मुद्दे को लेकर सरकार को कड़ी चेतावनी दी है। संघ के प्रवक्ता ने कहा कि यदि एक सप्ताह के भीतर वेतन नहीं मिला, तो राज्यभर के कॉलेजों में आगामी परीक्षाओं का बहिष्कार, धरना-प्रदर्शन और अनिश्चितकालीन हड़ताल की कार्यवाही की जाएगी। उन्होंने आरोप लगाया कि सरकार निजी एडेड कॉलेजों के प्रति उदासीनता दिखा रही है, जबकि ये संस्थान शिक्षा के क्षेत्र में अव्वल हैं।

इस संकट के पीछे सरकारी प्रक्रियाओं की जटिलता प्रमुख कारण है। एडेड कॉलेजों को सरकार द्वारा निर्धारित कोटे के अनुसार अनुदान मिलता है, लेकिन बजट स्वीकृति और कोषों का हस्तांतरण अक्सर महीनों लटका रहता है।
यह संकट अप्रत्यक्ष रूप से छात्रों की पढ़ाई को भी नुकसान पहुँचा रहा है। छात्र भी चिंतित हैं कि उनके शिक्षकों का ध्यान पढ़ाई के बजाय आर्थिक समस्याओं में उलझा है।
शिक्षक संघों ने सरकार से तत्काल तीन मांगें रखी हैं:
1. दो महीने के बकाया वेतन का तुरंत भुगतान।
2. भविष्य में वेतन व्यवस्था को पारदर्शी और समयबद्ध बनाने के लिए ऑनलाइन पेरोल प्रणाली लागू करना।
3. एडेड कॉलेजों के लिए स्वायत्त बजट आवंटन की व्यवस्था करना, ताकि अनुदान में देरी न हो।
शिक्षाविदों का मानना है कि यदि सरकार ने जल्द ही इस मुद्दे को हल नहीं किया, तो हरियाणा की शिक्षा प्रणाली की गुणवत्ता गिर सकती है। इसके अलावा, युवाओं में शिक्षण पेशे के प्रति रुचि कम होगी, जो राज्य के दीर्घकालिक विकास के लिए घातक हो सकता है।
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